सर्वेश्वर नाथ मंदिर बिरसिंहपुर मैं बसंत पंचमी के पावन पर्व पर चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण में चित्रकूट से पधारे आचार्य पंडित श्री सचिन शास्त्री ने कहा" "त्वं स्वाहा त्वं स्वधा त्वं हि वष्टकारः स्वरात्मिका ..!" जीव व ब्रह्म को उदर में धारण करने वाली नारी परमसत्ता की अत्यंत समर्थ, कोमल व निर्दोष अभिव्यक्ति है। मंत्रदृष्टा ऋषिकाओं से लेकर आधुनिक भारत के सृजन में मातृ सत्ता का अतुलनीय योगदान है ...। जब भारतीय ऋषियों ने अथर्ववेद में ‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः’ (अर्थात्, भूमि मेरी माता है और हम इस धरा के पुत्र हैं।) की प्रतिष्ठा की तभी सम्पूर्ण विश्व में नारी-महिमा का उद्घोष हो गया था। नेपोलियन बोनापार्ट ने नारी की महत्ता को बताते हुए कहा था कि - ‘मुझे एक योग्य माता दे दो, मैं तुमको एक योग्य राष्ट्र दूंगा’। परिवार, समाज, राष्ट्र नारी की सहभागिता के बिना अपूर्ण है, माँ दुर्गा ने महिषासुर का वधकर अधर्म का नाश करके धर्म की संस्थापना कर सद्शक्तियों का संरक्षण व संगठन किया था। मातृशक्ति का भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च महत्व है। जीवन का प्रवाह, हमारी प्राणशक्ति का स्रोत मातृशक्ति ही है। ब्रह्मांड के हर तत्व में निहित व हर तत्व की सृजनकर्ता मातृशक्ति ही है। इसलिए हिंदू धर्म के अनुसार मातृशक्ति को सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरूप भी कहा गया है। इसके बिना किसी भी ईश्वरीय तत्व का उद्भव ही संभव नहीं है। मातृशक्ति को आद्यशक्ति भी कहा गया है। माँ भगवती का हर स्वरूप अध्यात्म के मूल तत्वों - ज्ञान, सेवा, पराक्रम, समृद्धि, परमानन्द, त्याग, ध्यान और सृजन शक्ति का अवतरण है। मातृशक्ति के चार स्वरूप - गीता, गंगा, गायत्री और गौ माता हैं। पूज्य "आचार्यश्री" जी ने कहा - मनुष्य की कोई भी सोच जो समाज में भेद पैदा करे, मनुष्य को मनुष्य से दूर करे चाहे वह भाषावाद, प्रांतवाद और जातिवाद की ही बात क्यों न हो, उसे पनपने नहीं देना चाहिए। हम सभी आद्यशक्ति माँ भगवती की संतान हैं। हम सभी में एक ही चेतना है, एक ही प्राण हैं। हमारे किसी भी भेद से कष्ट माँ भगवती को ही होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि उसने हमें इस पावन धरा पर आपसी प्रेम व भाईचारे का अनुपम संदेश हर जगह फैलाने के लिए भेजा है। यही संगठन साधना है और राष्ट्र साधना है। मनुष्य को सही मायने में मनुष्य बनाने के लिए किया गया सर्वोत्तम प्रयास है। हम नव-ऊर्जा से परिपूरित होकर भारतीय जनमानस के लिए कुछ कर सकें तो समाज का कल्याण निश्चित है। माँ भगवती का दिव्य संदेश भी यही है ...।
🌿 पूज्य "आचार्यश्री" जी ने कहा - कौन भूल सकता है माता जीजाबाई को? जिनकी शिक्षा-दीक्षा ने शिवाजी को महान देशभक्त और कुशल योद्धा बनाया। कौन भूल सकता है पन्जी ने कहा - भारत के स्वतंत्रता-संग्राम में महिलाओं ने जितनी बड़ी संख्या में भाग लिया, उससे सिद्ध होता है कि समय आने पर महिलाएं प्रेम की पुकार को विद्रोह की हुंकार में तब्दील कर राष्ट्रीय अखण्डता को अक्षुण्ण बनाने में अपना सर्वस्व समर्पित कर सकती हैं। रानी लक्ष्मीबाई, सरोजनी नायडू, मादाम भिखाजी कामा, अरुणा आसफ अली, एनी-बेसेन्ट, भगिनी निवेदिता, सुचेता कृपलानी, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, दुर्गा भाभी एवं क्रांतिकारियों को सहयोग देने वाली अनेक महिलाएँ भारत में अवतरित हुईं, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इतिहास साक्षी है, जब-जब समाज या राष्ट्र ने नारी को अवसर तथा अधिकार दिया है, तब-तब नारी ने विश्व के समक्ष श्रेष्ठ उदाहरण ही प्रस्तुत किया है। मैत्रेयी, गार्गी, विश्ववारा, घोषा, अपाला, विदुषी भारती आदि विदुषी स्त्रियाँ शिक्षा के क्षेत्र में अपने बहुमूल्य योगदान के लिए आज भी पूजनीय हैं। आधुनिक काल में महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चैहान, महाश्वेता देवी, अमृता प्रीतम आदि मातृशक्ति ने साहित्य तथा राष्ट्र की प्रगति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। उन्नत राष्ट्र की कल्पना तभी यथार्थ का रूप धारण कर सकती है, जब महिला सशक्त होकर राष्ट्र को सशक्त करें। महिला स्वयं सिद्धा है, वह गुणों की सम्पदा हैं। आवश्यकता है इन शक्तियों को महज प्रोत्साहन देने की। यही समय की मांग है। नारी के सशक्तिकरण से ही पुरुष का सशक्तिकरण संभव है। संसार की आधी आबादी महिलाओं की है। अतः विश्व की सुख-शांति और समृद्धि में उनकी भूमिका भी विशेष रुप से रेखांकनीय हैं। भारतीय-चिन्तन-परम्परा में यह तथ्य प्रारंभ से ही स्वीकार किया जाता रहा है। इसलिए भारतीय-संस्कृति में नारी सर्वत्र शक्ति-स्वरुपा है; देवी रुप में प्रतिष्ठित है।