फिरोजाबाद
जन्मेजय नाग यज्ञ कुंड पर क्वार पुर्णिमा मेले का नहीं हुआ आयोजन फिर भी दो चार दुकानें लगी रही
फिरोजाबाद जनपद के तहसील जसराना क्षेत्र के कस्बा पाढम जो राजा परीक्षत नगरी के नाम से भी जाना जाता है यहां पर राजा परीक्षित किला के ढह जाने से खेड़े में तब्दील हो गया वहीं पर राजा परीक्षित कूप एवं जन्मेजय नाग यज्ञ कुंड का भी जिक्र होता है अरेन्द्र नदी के किनारे बना राजा परीक्षित खेड़ा महाभारत काल के वंशजों की धरोहर है यहां पर राजा जन्मेजय नाग यज्ञ कुंड पर बरसों से लग रहे मेले का नहीं हुआ आयोजन कोरोना महामारी के चलते लगाई गई रोक पर मेले का आयोजन नहीं हुआ कई सालों से लगातार लगता चला आ रहा मेला आज क्वार पूर्णिमा को बड़े भारी तरीका से लगता था जो काफी दूर-दूर से लोग यहां आते थे उस मेले का आयोजन नहीं हुआ फिर भी दो चार दुकान है मिट्टी के बर्तनों की लगी रही
महाभारत के युद्ध के बाद कुछ सालों तक पांडवों ने हस्तिनापुर पर राज किया। लेकिन जब वो राजपाठ छोड़कर हिमालय जाने लगे तो राज का जिम्मा अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को दे दिया गया। परीक्षित ने पांडवों की परंपरा को आगे बढ़ाया। एक दिन मन उदास होने पर राजा परीक्षित शिकार के लिए जंगल गए थे। शिकार खेलते-खेलते वह ऋषि शमिक के आश्रम से होकर गुजरे।
ऋषि उस वक्त ब्रह्म ध्यान में आसन लगा कर बैठे हुए थे। उन्होंने राजा की ओर ध्यान नहीं दिया। इस पर परीक्षित को बहुत तेज गुस्सा आया और उन्होंने ऋषि के गले में एक मरा हुआ सांप डाल दिया। जब ऋषि का ध्यान हटा तो उन्हें भी बहुत गुस्सा आया और उन्होंने राजा परीक्षित को शाप दिया कि जाओ तुम्हारी मौत सांप के काटने से ही होगी। राजा परीक्षित ने इस शाप से मुक्ति के लिए तमाम कोशिशे की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
राजा परीक्षित ने हर मुमकिन कोशिश की कि उनकी मौत सांप के डसने से न हो। उन्होंने सारे उपाय किए ऐसी जगह पर घर बनवाया जहां परिंदा तक पर न मार सके। लेकिन ऋषि का शाप झूठा नहीं हो सकता था। जब चारों तरफ से राजा परीक्षित ने अपने आपको सुरक्षित कर लिया तो एक दिन एक ब्राह्मण उनसे मिलने आए। उपहार के तौर पर ब्राह्मण ने राजा को फूल दिए और परीक्षित को डसने वला वो काल सर्प ‘तक्षक’ उसी फूल में एक छोटे कीड़े की शक्ल में बैठा था। तक्षक सांपो का राजा था। मौका मिलते ही उसने सर्प का रुप धारण कर लिया और राज परीक्षित को डस लिया।
राजा परीक्षित की मौत के बाद राजा जनमेजय हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठे। जनमेजय पांडव वंश के आखिरी राजा थे।
राजा जनमेजय का सर्प मेध यज्ञ:
जनमेजय को जब अपने पिता की मौत की वजह का पता चला तो उसने धरती से सभी सांपों के सर्वनाश करने का प्रण ले लिया और इस प्रण को पूरा करने के लिए उसने सर्पमेध यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ के प्रभाव से ब्रह्मांड के सारे सांप हवन कुंड में आकर गिर रहे थे। लेकिन सांपों का राजा तक्षक, जिसके काटने से परीक्षित की मौत हुई थी, खुद को बचाने के लिए सूर्य देव के रथ से लिपट गया और उसका हवन कुंड में गिरने का अर्थ था सूर्य के अस्तित्व की समाप्ति जिसकी वजह से सृष्टि की गति समाप्त हो सकती थी।
कैसे खत्म हुआ सर्प मेध यज्ञ:
सूर्यदेव और ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए सभी देवता जनमेजय से इस यज्ञ को रोकने का आग्रह करने लगे लेकिन जनमेजय किसी भी रूप में अपने पिता की हत्या का बदला लेना चाहता था। जनमेजय के यज्ञ को रोकने के लिए अस्तिका मुनि को हस्तक्षेप करना पड़ा, जिनके पिता एक ब्राह्मण और मां एक नाग कन्या थी। अस्तिका मुनि की बात जनमेजय को माननी पड़ी और सर्पमेध यज्ञ को समाप्त कर तक्षक को मुक्त करना पड़ा
रिपोर्ट कैलाश राजपूत