बावन गढ़ो में एक बधाण गढ़ी में सब कुछ होते हुए भी पर्यटन से अछूती                                        

चमोली उत्तराखंड                           
बावन गढ़ो में एक बधाण गढ़ी में सब कुछ होते हुए भी पर्यटन से अछूती                                        


 रिपोर्ट केशर सिंह                         


बावन गढो में एक बधाण गढी जिसमे पुरतत्ववादीयो प्रकृतिप्रेमी से आध्यातित्वम एम ऐतिहासिक अभिरुचि के व्यक्तियों हेतू आवश्यक समस्त तत्वो से युक्त पिंडर  की परम् इष्ट देवी मां भगवती व दक्षिण काली का मंदिर है जो समृद्ध धार्मिक आस्था एवम ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बाबजूद पर्यटन के नक्शे में जगह बनाने में कामयाब नही रही है।                         जनपद चमोली के सीमान्त छेत्र में अवस्थित तलवाडी स्टेट से 4 किलोमीटर था पर्यटन नगरी ग्वालदम से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बधाण गढी के इतिहास पर एक नजर डाली जाए तो कई ऐसे रोचक तथ्य सामने आते है। जो शोध हेतू अत्यधीक महत्वपूर्ण      हो सकते है । कभी  बधाण गढी ताम्रवंशीय राजाओ की राजधानी हुआ करती थी  जिसके राजा सूरजपाल बुटोला यही से राजकाज चलाया करते थे।           बागेश्वर (कुमाऊ) व  चमोली (गढ़वाल) की सीमा पर स्थित यह छेत्र गढ़वाल के नरेशो के लिए सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता था  बधाण के नरेशो व कुमाऊ के चन्द्र वंशी राजाओ के बीच सन 1568 से 1920 तक कई  युद्ध हुये जो कि लंबी अवधि का युद्ध काल माना जाता है ।।       किवदन्ती है कि कुमाऊ के राजा ने सन 1638 के  करीब  गढ़वाल पर आक्रमण कर राज किया । सन 1699 में  कत्यूरी नरेश ज्ञान चन्द्र ने बधाण गढी से माँ कालिका मन्दिर में स्थापित राजराजेश्वरी की मूर्ति को अपने साथ लेकर अल्मोड़ा के नंदा देवी मंदिर में स्थापित किया। बधाण गढी के खंडहर आज भी इस बात का प्रमाण है कभी यहां पर बेभावशाली अतीत का प्रतिविम्ब रही होगी  यहां पर खण्डहर हो चुकी सेनिको की बैरेको भण्डारगृह राजमहल के अवशेष गढी के चारो तरफ की चौकीया चारदीवारी पौराणिक शिल्प कला के नमूने  जो आज सरकारों की उदासीनता के चलते झाड़ झंखाड़ में तब्दील हो  चुके है  जिसे सरकार को पुरातत्व विभाग को सौप कर सही रख रखाव कर सवार कर पर्यटन को विकसीत करने की आवश्यक्ता है                 वही गढी के चारो तरफ चौड़ी खाइयो से लगता है उस समय इसका प्रयोग बड़े बड़े पत्थरो को तुड़वाकर शत्रु को खदेड़ने के लिए किया जाता होगा  वही  कुमाऊ के चन्द्रवंशीय राजाओ और गढ़वाल के ताम्रवंशीय राजाओ की जय पराजय सम्बन्धित  ख्तूड़ा त्योहार आज भी कुमाऊ में परम्परागत ढंग से मनाया जाता हैं।   बधाण गढी के ऊंचाई पर होने के कारण हिमालय का विशाल दृश्य कुमाऊ अल्मोड़ा कौशानी भेकलताल रूपकुंड नंदा देवी पर्वत त्रिशूली बद्रीनाथ की चोटिया  तथा लोहाजंग के नजारे देख कर हर कोई मन्त्र मुग्ध हो  जाता है और बधाण गढी की प्रशंसा किए बिना नही रह पाता     पिंडर छेत्र की जनता हो या कुमाऊ की जो बधाण गढी  माँ भगवती को अपनी इष्ट देवी मानते है क्षेत्र  के हर घर मे जब कोई शुभ काज होता है लोग सबसे पहले माँ के दरबार मे पहुच  कर कार्य सफलता की कामना करते है जो भी भक्त यहां सची श्रद्धा ले कर जाता है उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है बस जरूरत है इस धार्मीक एवम पर्यटक स्थल को सजाने  और सवारने की जिससे हमारे धार्मीक स्थलों को बढ़ावा मिल सके और उत्तराखंड की आर्थीकी में इजाफा हो  भले ही शासन प्रशासन व पुरातत्व विभाग ने बधाण गढी से मुह मोड़ा हो परंतू आज भी देशी विदेशी पर्यटकों का  तथा इतिहास कारो  का आना जाना लगा रहता है यातायात संसाधन के उचित प्रबन्धन न होने के कारण  इस ऐतिहासीक पौराणिक स्थल को जो पहचान मिलनी चाहिए थी वो नही मिल पाई  वही   छेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता शोधकर्ता  स्थानीय लोगो का  कहना है सरकार जहा पुराने मन्दिरो  को भी सवारने की बात तो करती है परन्तु  आज भी उत्तराखंड के 52 गढ़ो में एक बधाण गढी अपने विकास की बाट जोह रहा है।