गन्दगी से अटा पड़ा है मेला मैदान गौचर, मेला प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान
गौचर / चमोली।              रिपोर्ट
ललिता प्रसाद लखेड़ा
गन्दगी से अटा पड़ा है मेला मैदान गौचर, मेला प्रशासन नहीं दे रहा ध्यान
         ऐतिहासिक गौचर मेले के समाप्त हुऐ दो दिन बाद भी मेला मैदान में गन्दगी का अम्बार पसरा हुआ है। जिससे इस खूबसूरत मैदान की सुन्दरता हर वर्ष मेला समाप्ति के बाद कई दिनों तक अपने स्वरूप को नहीं ले पाती है। मेला मैदान की सफाई न होने पर स्थानीय लोगों व खेल प्रेमियों में प्रशासन के प्रति भारी नाराजगी भी दिखाई दे रही है।
      विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी गौचर मेला 14 से 20 नवंबर तक आयोजित किया गया, जिसमें मेले के दौरान और उसके बाद गौचर के विशाल साफ सुथरा रखने की कवायद हर साल तो की जाती है लेकिन मेला समाप्ति के बाद इस मैदान में गन्दगी, मैदान में जहां तहां गड्ढे, पत्थर और कूड़ा करकट जैसी चीजों का यहां डम्प हुआ रहना गौचर के इस विशाल खूबसूरत मैदान की नियति जैसी बन गई है।
     यहां मैला आयोजन में लाखों रुपये खर्च किये जाने के बावजूद भी ऐसा नहीं है कि मेले में अच्छी आमदनी न होती हो किन्तु कुछ ही पैसों में मेले के बाद इस मैदान की सफाई को हर हाल में अनदेखा ही किया जाता रहा है। जबकि हर वर्ष मेला आयोजन की बैठकों में मेला मैदान की सफाई का मुद्दा प्रमुखता से उठाया जाता है। इसके बावजूद भी इस मेले के कर्ताधर्ता मेला समापन के बाद सब कुछ भूल जाते हैं।
        नगरपालिका परिषद गौचर के पूर्व उपाध्यक्ष जयकृत बिष्ट ने कहा कि मेला समाप्ति के दो दिन बाद भी मेला मैदान की सफाई के प्रति मेला प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। वहीं दूसरी ओर पालिका के सीमित सफाई कर्मचारियों ने मैला मैदान की सफाई करने में अस्मर्थता व्यक्त किया गया है। जयकृत बिष्ट ने कहा कि जिस लगन और तेजी के साथ मेला आयोजन की तैयारी में मैदान को साफ सुथरा बना दिया जाता है ठीक उसी रफ्तार से इस मैदान के रखरखाव व सफाई को भी अंजाम दिया जाता। मगर मैला ख़त्म होने के बाद हर साल मैदान की स्थिति ढाक के तीन पात वाली जैसी ही बनी रहती है। जो कि नैसर्गिक सुंदरता को को लिये हुऐ वर्षों से इस मैदान का सबसे बड़ा दुर्भाग्य रहता रहा है। 
     मेले के बाद इस मैदान की गंदगी के कारण जो हालात प्रकृति प्रेमियों को देखने को मिलती है, यहां की प्रदूषित वातावरण को देखकर जो चिन्ता होती है उससे वे कई बार यह कहते हुवे भी सुनाई दिऐ कि अच्छा होता कि यह मैला ना ही होता।
      दूसरी ओर मेला के शुभचिंतक जहां मेला आयोजन के पक्ष में हमेशा खड़े दिखाई देते हैं वहीं उनका भी यह कहना है कि मेला आयोजन की उत्तरोत्तर प्रगति के साथ -  साथ प्रकृति की सुंदर छटा को समेटे हुऐ जनपद चमोली की एकमात्र शान गौचर के मैदान की स्वच्छता और रखरखाव का ध्यान तो रखा ही जाना चाहिऐ। कुल मिलाकर यह तो कहा ही जा सकता है कि वह पौराणिक मेला आयोजित होता रहना चाहिऐ मगर मेले के बाद इस मैदान के स्वरूप को यथावत रखने का किसी भी तरह से अनदेखा नहीं किया जाना चाहिऐ।
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