श्रीगंगानगर जिले का एक मात्र 365 हैड विकसित माना जाता है
श्रीगंगानगर जिले का एक मात्र 365 हैड विकसित माना जाता है

राजस्थान (संजय बिश्नोई राजस्थान ब्यूरो की रिपोर्ट) के श्रीगंगानगर जिला जो पाकिस्तान-पंजाब की सीमा से लगता इलाका है और एक से दूसरा छोर करीबन अढ़ाई सौ किमी है। करीबन-करीबन पंजाब प्रांत के बराबर। अगर अविभाजित जिले (हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर) के रूप में देखा जाये तो यह पंजाब राज्य से भी बढ़ा था और रेतीले टीलों, टूटी सड़कों के बीच एक से दूसरे छोर पर जाने वाला अधिकारी दूसरे दिन ही वापिस मुख्यालय आ पाता था। 
वर्तमान में जिला मुख्यालय से रावला के क्षेत्र को देखा जाये तो दूरी करीबन-करीबन दो सौ किमी की है। रायसिंहनगर-बिजयनगर तक गंगनहर का सिंचित क्षेत्र है किंतु इससे इंदिरा गांधी नहर परियोजना का हिस्सा आ जाता है। इस तरह से किसान को सिंचाई समस्या का समाधान करवाना हो तो हनुमानगढ़ जाकर उच्चाधिकारियों से मिलना पड़ता है। प्रशासनिक और पुलिस, रसद आदि से संबंधित समस्या है तो उसको श्रीगंगानगर जिला आना होगा। इस तरह से यह इलाका आज भी विकास की राह देख रहा है।
दो सौ किमी दूर रावला मुख्यालय पर सबसे बड़ा अधिकारी तहसीलदार और पुलिस थानाधिकारी है। तहसीलदार का पद भी कुछ समय पहले ही सृजित किया गया। चिकित्सा अधिकारी के रूप में वहां पर एमबीबीएस या आयुष चिकित्सक नियुक्त होते रहे हैं। विशेषज्ञ चिकित्सकों की भारी कमी है। 
यह हालात अकेले रावला के नहीं हैं बल्कि अनूपगढ़ विधानसभा क्षेत्र के अनूपगढ़, घड़साना, रावला, 365 हैड क्षेत्र के हैं। 
अगर श्रीगंगानगर जिले को प्रदेश का सबसे विकसित जिला माना जाता है तो अनूपगढ़ विधानसभा क्षेत्र आज भी आर्थिक, चिकित्सा, शिक्षा सहित अन्य क्षेत्रों में काफी पीछे है। 
यह हालात तब भी हैं जब केन्द्र में स्थानीय क्षेत्र के सांसद केन्द्रीय मंत्री हैं। वह पिछले पांच सालों से भी ज्यादा समय से। वित्त राज्यमंत्री के पद पर भी रहे किंतु यहां के हालात को बदल नहीं पाये?
क्या हालात हैं अनूपगढ़ विधानसभा क्षेत्र के?
अनूपगढ़ विधानसभा क्षेत्र को देखा जाये तो विधानसभा मुख्यालय पर उपखण्ड अधिकारी, उप पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी नियुक्त हैं। इसी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा घड़साना भी है। यहां पर एसडीएम स्तर के अधिकारी नियुक्त हैं। पुलिस में एसएचओ स्तर के अधिकारी हैं। यह पाकिस्तान सीमा के बहुत नजदीकी इलाका है। रावला में उच्चस्तर के अधिकारियों में थानाधिकारी और तहसीलदार स्तर के अधिकारी हैं। हालांकि तीनों ही क्षेत्रों में सामुदायिक चिकित्सा केन्द्र है। 
डॉक्टर्स की भारी कमी?
अनूपगढ, घड़साना और रावला तीनों ही क्षेत्रों में चिकित्सकों की भारी कमी है। मुख्यालय पर यह हालात हैं तो दूर-दराज के इलाकों में बसे गांवों की हालत कैसी होगी, इसको भी समझा जा सकता है। 
सुरक्षित मातृत्व भले ही प्रधानमंत्री की प्राथमिक योजना हो, किंतु इस क्षेत्र में डॉक्टर्स की कमी के कारण यह सामुदायिक चिकित्सा केन्द्र सिर्फ रैफरल सेंटर बनकर रह गये हैं। रोगियों को यहां से जिला अथवा अन्य अस्पताल रैफर कर दिया जाता है। 
सरकार को अवगत करवाया, हालात नहीं बदले?
विधायक संतोष बावरी कहती हैं कि सरकार को अवगत करवाया गया, किंतु हालात नहीं बदल पाये। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में डॉक्टर्स आना ही नहीं चाहते। डॉक्टर्स की नियुक्ति की जाती है तो वह तबादला करवाकर चले जाते हैं। पूर्व में वसुंधरा सरकार के समय भी काफी प्रयासों के बावजूद भी यहां चिकित्सालयों की हालत को बेहतर नहीं बनाया जा सका। 
अनूपगढ़ को जिला बनाने की मांग
प्रशासनिक, आर्थिक, शिक्षा और अन्य क्षेत्रों में काफी पीछे चल रहे अनूपगढ़ विधानसभा क्षेत्र में यह मांग भी सालों से चली आ रही है कि अनूपगढ़ को जिला बनाओ। इस मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन सबकुछ हो चुका है। जो भी बड़ा पॉलिटिकल पर्सन पहुंचता है, उसको भी ज्ञापन देकर यह मांग उठायी जाती है। पूर्व में वसुंधरा सरकार ने  नये जिलों के संबंध में एक कमेटी भी बैठायी थी किंतु उस कमेटी की रिपोर्ट धरातल पर लागू नहीं हो पायी। 
आंदोलन की धरती रही है अनूपगढ़-घड़साना
वर्ष 2005 में सिंचाई पानी को लेकर बड़ा आंदोलन हो चुका है। इसके उपरांत भी यहां पर अन्य समय पर भी आंदोलन होते रहे हैं और इंदिरा गांधी नहर परियोजना से सिंचित होने वाले इस क्षेत्र को पर्याप्त पानी दिये जाने की मांग को लेकर होने वाले आंदोलन की एक लम्बी सूची है। बिजयनगर में अधीक्षण अभियंता स्तर के अधिकारी का पद भी जल संसाधन विभाग में सृजित किया गया किंतु आंदोलन के कारण वहां पर एसई स्तर का अधिकारी नियुक्त होने को राजी नहीं होता। वहां पर अधीनस्थ अधिकारियों से ही कार्य चलवाया जाता है। 
क्या हो सकता है वैकल्पिक मार्ग
अनूपगढ़ विधानसभा क्षेत्र में नियुक्त रहे एक अधिकारी ने कहा कि तीनों ही क्षेत्रों को मिलाकर एक बड़ा सेंटर बनाया जाए। हाल ही में सरकार ने अलवर से अलग भिवाड़ी को जिला पुलिस अधीक्षक क्षेत्र का सृजन किया है। इसी तरह से इस क्षेत्र में भी एक कदम उठाया जा सकता है। जिला परिषद में जिस तरह से आईएएस अधिकारी नियुक्त किये जाते हैं। उसी तरह से एक नया सहायक जिला कलक्टर कार्यालय को विकसित किया जाये। वहां पर आईएएस स्तर के अधिकारी को नियुक्त किया जाये। इससे वहां पर कार्य करने वाले अन्य विभागों के अधिकारियों में सुरक्षा की भावना ज्यादा मजबूत होगी। चिकित्सा क्षेत्र में भी एक बड़ा हॉस्पीटल बनाया जाये तो निश्चित रूप से यहां के हालात काफी बदल सकते हैं। सूचना तंत्र को मजबूत करने के लिए कदम उठाये जायें। अगर इस तरह के कार्य होते हैं तो आंदोलन की भी संख्या कम होगी। सरकारी क्षेत्र के प्रति विश्वास भी मजबूत होगा। अधिकारियों को भी बार-बार जिला मुख्यालय से मार्गदर्शन प्राप्त करने की परंपरा से छूट प्राप्त होगी। एमएसएमई क्षेत्र के उद्योग स्थापित हो सकेंगे और किसानों को खेती के अतिरिक्त अन्य रोजगार प्राप्त हो सकेंगे। खनिज सम्पदा के प्रति अभी तक जो नीति रही है, उसमें भी बदलाव होगा और सरकार को ज्यादा राजस्व प्राप्त हो सकेगा जो नये खर्चों को पूर्ण कर सकेगा। 
संसदीय क्षेत्र के विकास में कमजोर रहे मंत्री
अनूपगढ़ विधानसभा क्षेत्र का इलाका बीकानेर संसदीय क्षेत्र में आता है और अर्जुन राम मेघवाल इस क्षेत्र के सांसद हैं। वे केन्द्र में पिछले पांच सालों से मंत्री भी हैं। इलाके में विकास जो होना चाहिये था, वह नहीं हो पाया। जो मूलभूत आवश्यकताएं क्षेत्र के लोगों को मिलनी चाहिये थी, वह नहीं मिल पायी। इस संबंध में सांसद का पक्ष जानने का प्रयास भी किया गया और उनके पास मैसेज भी छोड़ा गया, किंतु उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया।