रेजांगला-युद्ध" में भारत की रक्षा में हंसते-हंसते आहुति दे दी,रेजांगला दिवस पर शत-शत नमन
18 नवम्बर,1962 (दीपावली) भारत के 114 वीर सैनिकों (रणबांकुरे अहीरों ) ने "रेजांगला-युद्ध" में भारत की रक्षा में हंसते-हंसते आहुति दे दी,रेजांगला दिवस पर शत-शत नमन
भारत vs चीन: 1962 का “रेज़ांग ला” का युद्ध; एक अविश्वसनीय लड़ाई रेज़ांग ला (Rezang La) भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के लद्दाख़ क्षेत्र में चुशूल घाटी के दक्षिणपूर्व में घाटी में प्रवेश करने वाला एक पहाड़ी दर्रा है.सन 1962 के भारत-चीन युद्ध में केवल 120 भारतीय सैनिकों ने 1300 चीनी सैनिकों को मारा!विश्व इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ की किसी विरोधी सैनिक देश ने दुसरे देश के सैनिको  को इतना सम्मान दिया (चीनियों ने दिया था जब हमारे वीर अहीर शेरों की लाशों को चीनियों ने कम्बल से ढका और उनके सिर के साथ उनकी बन्दूक को खड़ा किया और एक कार्ड पर “बहादुर” लिख कर उनके सीने पर रख दिया और फिर रेडियो पीकिंग से खबर दी की चीन का सबसे ज्यादा नुक्सान रेजांगला में हुआ क्योंकि एक बहुत ही बहादुर कौम ने रेजांगला में मुकाबला किया था )|
आप को कैसे यकीन दिलाये की यह एक सिहरन पैदा करने वाली स्थिति थी ,दुःख की बात है ,जिस कथा को पुरे विवरण को पूरी दिलेरी से दिखाना चहिये था ,उसे मात्र दो शब्दों में निपटा दिया गया
 दुनिया का सैन्य इतिहास यूं तो वीरता की कहानियों से भरा पड़ा है, परंतु रेजांगला की गौरवगाथा हर लिहाज से शहादत की अनूठी दास्तां हैं। बिना किसी तैयारी के अहीरवाल के वीर जवानों ने आज ही के दिन 18 नवंबर 1962 को लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर शहादत का ऐसा इतिहास लिखा था, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह यहां के वीरों के जज्बे का ही परिणाम था, जिसके चलते चीन सीज फायर के लिए मजबूर हो गया था। बेशक भारत को इस युद्ध में अधिकारिक रूप से जीत नसीब नहीं हुई, परंतु सामरिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानी जाने वाली रेजांगला पोस्ट पर यहां के जांबाज जवानों ने हजारों चीनी सैनिकों को मार गिराया था। रेजांगला पोस्ट पर वर्ष 1962 की इस लड़ाई में तत्कालीन 13 कुमाऊं बटालियन के कुल 124 जवान शामिल थे, जिनमें से 114 शहीद हो गये थे। शहादत देने वालों में अधिकांश जवान अहीरवाल क्षेत्र के थे। कुर्बानी देने से पूर्व इन जवानों ने देश की सरहद की ओर बढ़ रहे चीन के 1300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। इस युद्ध की खास बात यह थी कि चीनी सैनिक जहां पहाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों व बर्फीले मौसम से पूरी तरह अभ्यस्त थे, वहीं मैदानी क्षेत्रों से गये भारतीय सैनिकों के लिए परिस्थितियां पूरी तरह प्रतिकूल थी। हथियारों के मामले में भी भारतीय जवान चीन के सैनिकों से पीछे थे। विशेष बात यह भी थी कि चीन जहां पूरी तैयारी के साथ युद्ध मैदान में उतरा था, वहीं भारत-चीनी भाई-भाई के नारे के बीच भारत को सपने में भी चीनी आक्रमण का आभास नहीं था। रेजांगला पोस्ट पर लड़ रहे वीरों के सामने परीक्षा की घड़ी 17 नवंबर की रात उस समय आई, जब तेज आंधी-तूफान के कारण रेजांगला की बर्फीली चोटी पर मेजर शैतान सिंह भाटी के नेतृत्व में मोर्चा संभाल रहे सी कंपनी से जुड़े इन 124 जवानों का संपर्क बटालियन मुख्यालय से टूट गया। ऐसी ही विषम परिस्थिति में 18 नवंबर को तड़के चार बजे युद्ध शुरू हो गया। नजदीक की दूसरी पहाडि़यों पर मोर्चो संभाल रहे अन्य सैनिकों को रेजांगला पोस्ट पर चल रहे इस ऐतिहासिक युद्ध की जानकारी तक नहीं थी। लद्दाख की बर्फीली, दुर्गम व 18 हजार फुट ऊंची इस पोस्ट पर सूर्योदय से पूर्व हुए इस युद्ध में यहां के वीरों की वीरता देखकर चीनी सेना कांप उठी। इस युद्ध में 124 में से कंपनी के 114 जवान शहीद हो गये, लेकिन उन्होंने चीन के आगे बढ़ने के मंसूबों पर पानी फेर दिया। पीकिंग रेडियो ने भी तब केवल रेजांगला पोस्ट पर ही चीनी सेना की शिकस्त स्वीकार की थी। रेजांगला पोस्ट पर दिखाई वीरता का सम्मान करते हुए भारत सरकार ने कंपनी कंमाडर मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार पदक परमवीर चक्र से अलंकृत किया था तथा इसी बटालियन के आठ अन्य जवानों को वीर चक्र, चार को सेना मैडल व एक को मैंशन इन डिस्पेच का सम्मान दिया था। इसके अलावा 13 कुमायूं के सीओ को एवीएसएम से अलंकृत किया गया था। भारतीय सेना के इतिहास में किसी एक बटालियन को एक साथ बहादुरी के इतने पदक अब तक कभी नहीं मिले। सरकार ने चार्ली कंपनी की वीरता को देखते हुए बाद में एक अहम निर्णय लेते हुए कंपनी का दोबारा गठन किया तथा इसका नाम रेजांगला रखा। रेजांगला युद्घ में शहीद हुए सैनिकों में मेजर शैतान सिंह पीवीसी जोधपुर के भाटी राजपूत थे, जबकि नर्सिग सहायक धर्मपाल सिंह दहिया (वीर चक्र) सोनीपत के जाट परिवार से थे। कंपनी का सफाई कर्मचारी पंजाब का रहने वाला था। इनके अलावा शेष सभी जवान अहीर जाति के थे। इनमें से भी अधिकांश हरियाणा के रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़ व सीमा से सटे अलवर जिले के रहने वाले थे।
ख़ास बात ये रही की जब गोलियां खत्म हो गई तो जवानों ने हथियारों का इस्तेमाल लाठियों के रूप में किया और रेजांगला पोस्ट पर दुश्मन का कब्जा होने नहीं दिया। हमारी आने आने वाली पीढि़यों को प्रेरणा मिले उन वीरों को शत् शत् नमन
 
Popular posts
कुंवारी कन्याएं पीपल पूजन को इस महीने में श्रेष्ठ मानती है
साध्वी प्रेम बाईसा के जन्मदिवस पर संतों ने किया संगम वृक्षारोपण
चित्र
जिला पर्यावरणीय समिति, वृक्षारोपण समिति, जिला गंगा समिति एवं वन बन्दोवस्त समिति की बैठक सम्पन्न
चित्र
प्रभारी मंत्री श्री सुरेश कुमार खन्ना ने छठ महापर्व के आयोजन को लेकर लक्ष्मण मेला मैदान घाट पर तैयारियों का निरीक्षण किया*
चित्र
पुलिस अधीक्षक कौशाम्बी द्वारा पुलिस कार्यालय स्थित दुर्गा भाभी सभागार में जनपद के समस्त थानों पर नियुक्त महिला बीट आरक्षियों के साथ मीटिंग की गई।
चित्र