बुंदेलखंड की वीर वीरांगना झांसी की झलकारी बाई: दलित वीरांगना जिनकी वीरता से इतिहास ने न्याय नहीं किया।
बुंदेलखंड की वीर वीरांगना झांसी की झलकारी बाई: दलित वीरांगना जिनकी वीरता से इतिहास ने न्याय नहीं किया।

न्यूज एसीपी नेटवर्क की खास रिपोर्ट 
हमारे देश में कई महान लोग हुए हैं l 
दुर्भाग्य से कई के साथ हमारे इतिहासकारों ने न्याय नहीं किया और उन्हें इतिहास में वो जगह नहीं मिल सकी, जिसके वो हकदार थे l ऐसी ही एक महान शख्सियत हैं झलकारी बाई  रानी लक्ष्मी बाई की वीरता और शौर्य से हम सब वाकिफ हैं लेकिन उन्हीं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाली झलकारी बाई के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं l
*कौन थीं झलकारी बाई*
22 नवंबर 1830 को झांसी में एक दलित परिवार में जन्मीं झलकारी बाई अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं l झलकारी बाई की माता का उनके बचपन में ही निधन हो गया था l गरीब और दलित परिवार से होने के चलते झलकारी बाई स्कूली शिक्षा हासिल नहीं कर पाईं लेकिन उन्होंने बचपन में ही हथियार चलाना और घुड़सवारी सीख ली थी l
झांसी की लोककथाओं में झलकारी बाई का खूब जिक्र मिलता है और कहा जाता है कि एक बार उनके गांव में रहने वाले एक व्यापारी के घर डाकू आ गए थे, तब झलकारी बाई ने अकेले ही उन डाकुओं को भागने पर मजबूर कर दिया था l ऐसा भी कहा जाता है कि एक बार जंगल में शेर ने उन पर हमला किया तो उन्होंने अकेले ही कुल्हाड़ी से शेर को मार डाला था l
कैसे हुई रानी लक्ष्मीबाई से मुलाकात
झलकारी बाई की शादी पूरन सिंह के साथ हुई थी l पूरन सिंह रानी लक्ष्मी बाई की सेना के सिपाही थे और बड़े बहादुर माने जाते थे. कहा जाता है कि एक बार गौरी पूजा के अवसर पर झलकारी बाई, गांव की अन्य महिलाओं के साथ झांसी के किले में गईं थी l उसी दौरान रानी लक्ष्मी बाई की नजर उन पर पहली बार पड़ी थी l
दरअसल झलकारी बाई का चेहरा रानी लक्ष्मीबाई से काफी मिलता जुलता था l यही वजह है कि रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी बाई को नोटिस किया और जब उन्हें पता चला कि झलकारी बाई उनकी सेना के एक सैनिक की पत्नी हैं तो रानी ने उनसे अलग से बातचीत की l जब रानी को झलकारी बाई की वीरता के बारे में पता चला तो उन्होंने तुरंत ही उन्हें अपनी सेना की महिला टुकड़ी में शामिल कर लिया l इसके बाद झलकारी बाई ने हथियार चलाने और तोप चलाने का प्रशिक्षण भी लिया l
साल 1857 के गदर के दौरान जब रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरी तो अंग्रेजों ने झांसी पर हमला कर दिया l रानी लक्ष्मीबाई और उनकी पूरी सेना पूरी वीरता से लड़ी लेकिन अपने ही एक कमांडर के धोखे की वजह से ही उन्हें हार का सामना करना पड़ा और युद्ध का मैदान छोड़ना पड़ा l इसके बाद झलकारी बाई ने अंग्रेजों को युद्ध के मैदान में उलझाए रखने के लिए रानी लक्ष्मीबाई की तरह वेश धरकर अंग्रेजों के सामने यह कहकर आत्मसमर्पण किया कि वह रानी लक्ष्मीबाई हैं l
झलकारी बाई के रानी लक्ष्मीबाई के तरह दिखने के चलते एक बारगी अंग्रेज भी धोखा खा गए थे l हालांकि कुछ ही देर बाद अंग्रेज हकीकत जान गए और झलकारी बाई को गिरफ्तार कर लिया गया l झलकारी बाई की मृत्यु को लेकर काफी गलतफहमी है l दरअसल कुछ लोगों का मानना है कि 1858 को ही उनका निधन हो गया था l वहीं कुछ लोग मानते हैं कि अंग्रेजों ने उन्हें छोड़ दिया था और उसके कई साल बाद 1890 में उनका निधन हुआ l
इतिहास ने लंबे समय तक झलकारी बाई की वीरता को भुलाए रखा लेकिन बाद में उनकी महानता को सम्मान मिला और साल 2001 में ग्वालियर में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई l साथ ही सरकार ने झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था l