वेदों का चार भागों में विभाजन कर्ता, 18 पुराणों के रचयिता, वेदांत दर्शन का श्रेष्ठ ग्रन्थ ब्रह्म सूत्र के प्रणेता महर्षि पराशर के सुपुत्र कृष्ण व्दैपायन भगवान वेदव्यास जी का जन्म आषाढ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन माता सत्यवती के गर्भ से हुआ था! इसी दिन को व्यास पूर्णिमा तथा गुरु पूर्णिमा भी कहते है! भगवान वेदव्यास आदि गुरु के रुप में माने जाते हैं, कारण कि " व्यासोच्छिष्टं जगत् सर्वम् "की उक्ति के अनुसार संसार में जितना भी जान है वह सब वेद व्यास जी का ही कहा हुआ है!
मनुष्य के जीवन में पांच प्रकार के गुरुओ का प्रमुख स्थान है!
(1) प्रथम गुरु "माता" है जो जन्म देती है, खान, पीना, चलना एंव बोलने की शिक्षा देती है! प्रत्येक व्यक्ति की भाषा मातृभाषा कही जाती है!
(2) द्वितीय गुरु " पिता " है जो हमारे शरीर के जनक है! पिता श्रैष्ठ रुप से परिपालन करते है, शिक्षा आदि की समुचित व्यवस्था करते हैं!
(3) तृतीय गुरु "कुलगुरु" है जो उपनयन संस्कार करके गायत्री मंत्र दीक्षा देकर विद्याध्यापन कराते हैं एंव समय 2 पर परिवार में विवाहित संस्कार कराते हैं!
(4) चतुर्थ गुरु "विद्या गुरु" है प्रारंभिक विद्याध्यापन से लेकर उच्चकोटि की विद्या की प्राप्ति कराते हैं! व्यक्ति के जीवन में इनकी संख्या अनेक हो सकती है!
(5) पंचम गुरु "सदगुरु" है जो भगवत नाम मंत्र की दीक्षा प्रदान करते हैं, भगवत भक्ति में संलग्न करते हैं एवं आत्मतत्व का वोधक कराते हैं! "मोक्ष मूलं गुरोः कृपा " इनकी कृपा से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है! "बोलो सद्गुरुदेव भगवान की जय"