रिपोर्ट केशर सिंह नेगी
अंग्यारी महादेव मे सावन के प्रत्येक सोमबार को श्रद्धालुओं का लगा रहता है ताता दुर्गम रास्तो को पार कर पहुंचते है श्रद्धालु मान्यता है निसंतान दम्पत्ती यहां पर आकर पुत्र के लिए मनौतिया मांगते है और जो सच्ची श्रद्धा से आता है
उसकी मनौतिया अवश्य पूर्ण होती है गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा पर स्थित अंग्यारी महादेव का मंदिर आज भी आस्था का प्रतीक बना हुआ है और अपनी पौराणिक महत्ता से जनमानस के आराध्य स्थल बने हुए है जहाँ देव भूमि की महत्ता पर यहां के चार धाम चार चाँद लगाते है वही कुछ देव स्थल प्रसिद्धि पाने में सफल हुए हैं परंतु कुछ भौगोलिक एवं अन्य परिस्थितियों के कारण गुमनाम की परिधि में विकास की दौड़ में पीछे छूट गए है इन्हीं में से एक जनपद चमोली एवं जनपद बागेश्वर की सीमा पर विकासखंड गरुड़ के मजकोट ग्राम सभा से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर तथा तलवाड़ी से 4 किलोमीटर की दूरी पर और बिनातोली से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर एक घनघोर जंगल में स्थित अंग्यारी महादेव का मंदिर है स्कंद पुराण के अनुसार इस स्थान को अंग ऋषि की तपस्थली बताया गया है जिस कारण यहां का नाम अग्यारी पड़ा धार्मिक महत्ता के अनुसार इस स्थल पर ऋषि-मुनियों की तपस्थली रही है इस स्थान पर पहुंचने के लिए कठिन और दुर्गम पहाड़ियों के घनाघोर जंगल से गुजरना पड़ता है परन्तु भोले के भक्तो को यहां पहुंचने पर अड़ीक आत्म विश्वास नहीं डिगा पाता है जहाँ श्रद्धालु मंदिर परिसर मे पहुंचते है सारी थकान छू मंतर हो जाती है और भक्त शांति की अनुभूति महसूस करने लगते है। वही मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचते ही गाय रूपी आकृति की शीला के मुंह से पानी की धारा निकलती है जो वसुधारा के नाम से प्रसिद्ध है इसी को गोमती नदी का उद्गम स्थल कहा जाता है मान्यता के अनुसार अंग ऋषि के पिता गुरु बृहस्पति ने इस स्थान पर शिव की तपस्या की कठिन तपस्या के पश्चात जब उन्हें भोले शंकर के दर्शन हुए तो उन्होंने सबसे पहले भोलेनाथ से उसी स्थान पर पानी के लिए भोले नाथ से प्रार्थना की भगवान शिव ने वहीं पर चट्टान से पानी की धारा बहाई जहाँ से गोमती नदी का उद्गम स्थल कहलाया गया मान्यता है कि नदी के उद्गम स्थल के साथ-साथ अंगरिषी गरुड़ रति शेरा होते हुए आगे बढ़े और जहां जहां उनके पांव पड़े वहां वहां शिवलिंग प्रकट हो गए गोमती नदी बैजनाथ गंगोलीहाट होते हुए बागनाथ पहुंचने पर सरियू में जा मिलती है बागनाथ विश्वामित्र की तपस्थली रही है किवदंती के अनुसार वसुधारा से पहले दूध का निकलना बताया जाता है देवी दोष या छेड़छाड़ के कारण दूध की जगह खून निकलना शुरू हुआ जिसके कारण गोमती के पत्थर आज भी लाल हैं जो आज गोमती नदी उद्गम स्थल से अक्षित मंदिर के परिसर से कुछ दूरी तक भूमिगत रहती है और रत्नेश्वर महादेव पहुंचने पर भूमि से बाहर निकलती है मंदिर के परिसर में भगवान हनुमान राधा कृष्ण शिव जी का मंदिर जबकि यहां पर आस्था का प्रतीक शिवलिंग सतयुग के समय का होना बताया जाता है इसका वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है गौरतलब है कि शिवालय के ठीक पीछे एक बद्री वृक्ष भी है जो कि केवल बद्रीनाथ में है घनघोर जंगल के बीच होने के कारण आवागमन के सही साधन ना होने के यह स्थान सदियों से गुमनामी की दश झेलता रहा सन 1910 में यहां पर मजकोट के भगवान गिरी तपस्या करने के लिए पहुंचे जिन्होंने जिन्होंने कुछ समय पश्चात समाधि ले ली थी तत्पश्चात प्रह्लाद बाबा वह महेंद्र गिरी ने भी इस स्थान पर पूजा अर्चना का तपस्या की और अपने देह को त्याग दिया फलस्वरूप इन की समाधि मंदिर के नीचे बनी हुई है 90 के दशक में विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रोफेसर काला साधु मोन रूप में इस स्थान पर पहुंचे और तपस्या करने लगे 1950 से लोगों का इस स्थान पर आवागमन प्रारंभ हुआ सावन के महीने में श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करते हैं कहा जाता है जो भक्त यहां सच्चे मन व आस्था से पूजा-अर्चना करता है उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। शिव भक्त दीपू रावत, हीरा बोरा प्रधान ग्वालदम , पप्पू जनधारी बाबा, वीरेंद्र सिंह नेगी, सुदर्शन सिंह बिष्ट , देवेंद्र रावत, खिलाप सिंह रावत ने बताया सावन के पहले सोमबार से मंदिर परिसर मे भागवत कथा का आयोजन किया जायेगा उन्होंने अधिक से अधिक श्रद्धालुओ को पहुंचने की अपील की है।
उसकी मनौतिया अवश्य पूर्ण होती है गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा पर स्थित अंग्यारी महादेव का मंदिर आज भी आस्था का प्रतीक बना हुआ है और अपनी पौराणिक महत्ता से जनमानस के आराध्य स्थल बने हुए है जहाँ देव भूमि की महत्ता पर यहां के चार धाम चार चाँद लगाते है वही कुछ देव स्थल प्रसिद्धि पाने में सफल हुए हैं परंतु कुछ भौगोलिक एवं अन्य परिस्थितियों के कारण गुमनाम की परिधि में विकास की दौड़ में पीछे छूट गए है इन्हीं में से एक जनपद चमोली एवं जनपद बागेश्वर की सीमा पर विकासखंड गरुड़ के मजकोट ग्राम सभा से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर तथा तलवाड़ी से 4 किलोमीटर की दूरी पर और बिनातोली से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर एक घनघोर जंगल में स्थित अंग्यारी महादेव का मंदिर है स्कंद पुराण के अनुसार इस स्थान को अंग ऋषि की तपस्थली बताया गया है जिस कारण यहां का नाम अग्यारी पड़ा धार्मिक महत्ता के अनुसार इस स्थल पर ऋषि-मुनियों की तपस्थली रही है इस स्थान पर पहुंचने के लिए कठिन और दुर्गम पहाड़ियों के घनाघोर जंगल से गुजरना पड़ता है परन्तु भोले के भक्तो को यहां पहुंचने पर अड़ीक आत्म विश्वास नहीं डिगा पाता है जहाँ श्रद्धालु मंदिर परिसर मे पहुंचते है सारी थकान छू मंतर हो जाती है और भक्त शांति की अनुभूति महसूस करने लगते है। वही मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचते ही गाय रूपी आकृति की शीला के मुंह से पानी की धारा निकलती है जो वसुधारा के नाम से प्रसिद्ध है इसी को गोमती नदी का उद्गम स्थल कहा जाता है मान्यता के अनुसार अंग ऋषि के पिता गुरु बृहस्पति ने इस स्थान पर शिव की तपस्या की कठिन तपस्या के पश्चात जब उन्हें भोले शंकर के दर्शन हुए तो उन्होंने सबसे पहले भोलेनाथ से उसी स्थान पर पानी के लिए भोले नाथ से प्रार्थना की भगवान शिव ने वहीं पर चट्टान से पानी की धारा बहाई जहाँ से गोमती नदी का उद्गम स्थल कहलाया गया मान्यता है कि नदी के उद्गम स्थल के साथ-साथ अंगरिषी गरुड़ रति शेरा होते हुए आगे बढ़े और जहां जहां उनके पांव पड़े वहां वहां शिवलिंग प्रकट हो गए गोमती नदी बैजनाथ गंगोलीहाट होते हुए बागनाथ पहुंचने पर सरियू में जा मिलती है बागनाथ विश्वामित्र की तपस्थली रही है किवदंती के अनुसार वसुधारा से पहले दूध का निकलना बताया जाता है देवी दोष या छेड़छाड़ के कारण दूध की जगह खून निकलना शुरू हुआ जिसके कारण गोमती के पत्थर आज भी लाल हैं जो आज गोमती नदी उद्गम स्थल से अक्षित मंदिर के परिसर से कुछ दूरी तक भूमिगत रहती है और रत्नेश्वर महादेव पहुंचने पर भूमि से बाहर निकलती है मंदिर के परिसर में भगवान हनुमान राधा कृष्ण शिव जी का मंदिर जबकि यहां पर आस्था का प्रतीक शिवलिंग सतयुग के समय का होना बताया जाता है इसका वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है गौरतलब है कि शिवालय के ठीक पीछे एक बद्री वृक्ष भी है जो कि केवल बद्रीनाथ में है घनघोर जंगल के बीच होने के कारण आवागमन के सही साधन ना होने के यह स्थान सदियों से गुमनामी की दश झेलता रहा सन 1910 में यहां पर मजकोट के भगवान गिरी तपस्या करने के लिए पहुंचे जिन्होंने जिन्होंने कुछ समय पश्चात समाधि ले ली थी तत्पश्चात प्रह्लाद बाबा वह महेंद्र गिरी ने भी इस स्थान पर पूजा अर्चना का तपस्या की और अपने देह को त्याग दिया फलस्वरूप इन की समाधि मंदिर के नीचे बनी हुई है 90 के दशक में विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रोफेसर काला साधु मोन रूप में इस स्थान पर पहुंचे और तपस्या करने लगे 1950 से लोगों का इस स्थान पर आवागमन प्रारंभ हुआ सावन के महीने में श्रद्धालु यहां पूजा अर्चना करते हैं कहा जाता है जो भक्त यहां सच्चे मन व आस्था से पूजा-अर्चना करता है उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। शिव भक्त दीपू रावत, हीरा बोरा प्रधान ग्वालदम , पप्पू जनधारी बाबा, वीरेंद्र सिंह नेगी, सुदर्शन सिंह बिष्ट , देवेंद्र रावत, खिलाप सिंह रावत ने बताया सावन के पहले सोमबार से मंदिर परिसर मे भागवत कथा का आयोजन किया जायेगा उन्होंने अधिक से अधिक श्रद्धालुओ को पहुंचने की अपील की है।