आत्माराम यादव
होशंगाबाद जिला मुख्यालय पर सोमवार 24 मार्च 1997 को पत्रकारों की विभिन्न मांगो ओर समस्याओ को लेकर बैठक थी। बैठक के एजेंडे में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी द्वारा नेहरू पार्क ओर पानी कि टंकी के बीच के जगह को पत्रकार कालोनी के लिए चुना ओर नगरपालिका ने अनुमति दे दी तब 5 लाख रुपए श्री सांसद जी ओर 10 लाख पचौरी जी ने देने की घोषणा को लेकर कलेक्टर ने पत्रकारों की यह बैठक रखी। बैठक से पूर्व ही एक दो पत्रकार निषेधमुख हो गए, वे नहीं चाहते थे कि पत्रकारों की कालोनी बने ओर पत्रकार उसमें बसे। समाज में घातक तत्व तो होते है पर जो घातक तत्व की अवांछित कृत्य से न्यूज पैदा करे,यह मैंने पहली बार उन पत्रकारों में पाया जो अपने को उच्च कुल का समझकर पिछड़ों को संक्रामक बीमारी समझे। उन मित्रों का लोभ के वशीभूत अविवेकपूर्ण सोच का ही परिणाम था कि पत्रकारों का घर बसने से पहले उजड़ जाये ओर उनकी समस्याएँ दम तोड़ दे। पत्रकारों के आवास बसने से पहले टांग अड़ाने वाले वे तथाकथित पत्रकार समझते थे कि जिन्हे आवास मिलेगा वे जेहादी-अलगाववादी है,उनकी नजर में तब के कलमकार आतंकवादी रहे होंगे ,जिनके रोड़े अटकाने वाले ही प्रयास थे की आज तक पत्रकारों की कालोनी का सपना इन 22 सालों में पूरा नही हो सका। वे तथाकथित तब भी पत्रकारिता के मूल्यों ओर मानवीय मूल्यों का अंतर नहीं समझते थे ओर न आज समझते है। उनमें कोई राजनीति, कोई कारोबार को चलाने,कोई गलत कारोबार में संरक्षण पाने तो कोई अन्य प्रयोजन से पत्रकारिता का दामन थामे हुये थे। पत्रकारिता का पतन तभी से देखने को मिला जब हर चीज बिकती है के स्लोगन को पत्रकारिता में आँककर दाम वसूलना शुरू किए।
नर्मदापुरम संभाग के अधिकांश पत्रकारों को मुगालसा है कि वे सकारात्मक पत्रकारिता को नर्मदा में गिर रहे नाले में विसर्जित कर अपनी नकारात्मक सोच को आप तक पहुंचाकर शत-प्रतिशत लोकहित में जुटे रहकर अपना जीवन खपा रहे है। वे सत्यं शिवम ओर सुंदरम के उजास पक्ष को असत्य, अशिव ओर असुंदर के विकृत पक्ष को सर्वोपरि मानकर सोसलमीडिया के कचरे को सृजन करके बिना श्रम किए जायकेदार बनाकर स्वहित साधकर पत्रकारिता में प्राण फूँक रहे है। खैर अखबार हो या चैनल, दुनियाभर कि रिपोर्टिंग करके ये अखबार ओर चैनल का पेट तो भर देते है परंतु अधिकांश पत्रकार ऐसे दोयम दर्जे का जीवन जीते है, जिनके यहा नल- नाली, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाये न होने से वे इन्हे चिढ़ाती है ओर वे जिला प्रशासन से उम्मीद रखते है कि उनके घर के आसपास कि गलिया साफ सुधरी हो, नाली की सफाई हो, सड़क का पक्का निर्माण हो,जो इन पत्रकारों कि ही नही बल्कि इनके परिवार की, गली-मोहल्लेवालों की भी चाह होती है। कुछेक पत्रकार इसलिए दुखी रहते है कि वे हमेशा अपनी जान पर खेलकर किसी विभाग की कलई खोलकर भृष्टाचार उजागर करते है परंतु कलेक्टर के पास जनसम्पर्क विभाग द्वारा उसकी कटिंग भेजने के बाद भी कोई कार्यवाही नही होती, इसे लेकर जिले के सारे पत्रकारों ने कलेक्टर को शिकायत की, उन्होने पत्रकारों की समस्याओ को लेकर बैठक बुलाने कि व्यवस्था कर दी। कुछ पत्रकार जो रोज कलेक्टर से बातचीत कर उनके नाम से कुछ न कुछ पक्ष रखते है वे उनके आफिस के आसपास गिंजई जैसे मँडराते है उन्हे इस बैठक से कोई सरोकार नहीं लगा। हाँ जो पत्रकार छुटभैया की श्रेणी में गिने जाते है, जिनके मोबाइल कलेक्टर या अधिकारी नही उठाते,उनकी खबरों पर कोई ध्यान नही देता वे तमाम पत्रकार इस त्रैमासिक बैठक जो की साल में चार बार सरकारी नियम के अनुसार होना चाहिए लेकिन कलेक्टर उसे नही बुलाकर पत्रकारों को छ्लते है के द्वारा बैठक बुलाये जाने पर खुश थे।
कलेक्टर के रेवाकक्ष में आज पत्रकारों की निजी समस्याओं को सुनने ओर उनका निराकरन करने की बैठक शुरू हुई। मीटिंगहाल पत्रकारों से खचाखच भरा था। बात मंत्री जी द्वारा पत्रकारों के लिए बनने वाली आवासीय कालोनी के साथ पत्रकारों की निजी समस्याओ पर होनी थी लेकिन कलेक्टर ने बैठक कि शुरुआत से पहले जनसम्पर्क अधिकारी को अपने बगल में बिठाया ओर हिदायत दी कि सभी के नाम,पेपर,चैनल का नाम ओर उनके पास निजी भूमि, भूमिहीन आदि की जानकारी ओर उनकी समस्या को सुनकर प्रतिवेदन प्रस्तुत करोगे? उनके जबाब देने के बाद अधिकारियों के चहेते पत्रकार कालोनी का विरोधी एक पत्रकार ने बात शुरू कि सर हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है की, हम जिले के कई विभागों में चल रही अव्यवस्था, अनियमितता ओर गबन धोखाधड़ी ओर भ्रष्टाचार को उजागर करते है किन्तु इस पर कोई ध्यान नही दिया जाता है? कलेक्टर बोले मुझे यकीन नही होता कि अधिकारिगण भृष्ट है जबकि मेरे आने के बाद वे सभी आदर्शवान ओर सदचरित्र हो गए है वे ऐसा कोई आचरण नहीं करते जिसे तुम आरोपित कर रहे हो। कलेक्टर ने अपने कामों कि प्रशंसा कर अपने अधिकारियों का बचाव करते हुये पत्रकाओं को सुझाव दिये कि जो भी समाचार आप लोग छापते हो या चैनल पर बढ़ा-चढ़ा कर दिखाते हो, उसे लेकर मैं अधिकारियों से पुंछता हूँ तो वे खुद बताते है कि किन-किन पत्रकार को खाद्य विभाग, खनिज विभाग, आबकारी विभाग, कृषि विभाग,पीड्व्ल्युडी विभाग,महिला बाल विकास विभाग से क्या-क्या डिमांड रखते है उसकी खबर है, जिसकी डिमांड पूरी नही हो वही अधिकारी को भ्रष्ट बतलाकर पत्रकारिता का रौब झाडता है। कलेक्टर की बात खत्म होते ही माइक एडीएम ने ले लिया ओर बोले कि हम जानते है कि जिले में किसी विभाग में कोई अव्यवस्था नहीं है,सभी भुगतान ऑनलाइन हो रहे है इसलिए भ्रष्टाचार की बात ही पैदा नही होती? हम अगर पत्रकारों कि बात मान भी ले तो अब्बल इसलिए विश्वास नही करते कि खबर सभी अखबार या चैनल पर नहीं एकाध अखबार या चैनल कि होती है ओर जांच में पत्रकार ही लेनदेन की परिधि में आता है, लेकिन हमारी मर्यादा अधिकारियों के लिए है इसलिए हम पत्रकार को छोड़ देते है, यह प्रशासन कि दरियादिली है।
कलेक्टर ने देखा पत्रकारों के चेहरे पर कुछ नाराजी के भाव है कुछ क्रोध में फुफकारने को तैयार है तो कुछ नीचे जमीन ताक रहे है। तभी एक पत्रकार खड़ा हुआ ओर बोला सर पत्रकार कालोनी को लेकर चर्चा करे, कलेक्टर ने बीच में ही बात काटी ओर पत्रकारों को बोलने का मौका न देते हुये कलेक्टर बोले, देखो अभी जो बात एडीएम साहब कह रहे थे ये उनका नजरिया है पर जिलाधिकारी के रूप मे जहा तक में समझता हूँ मेरी नजर में आप सभी सम्मानीयजन है। पहले उनकी बात खत्म हो जाये फिर आपकी बात को भी सुना जाएगा। आप सभी के चैनलो कि व्हाइट, अखबारों से उत्पादित खबरों को पीआरओ कतरनों के रूप में भेजते है जिसे हम बड़े चाव से मजे लेकर पढ़ते है ओर खुशी होती है कि आप कितने विद्वान है ओर विभागों के अंदर तक पकड़ रखते हो। खामोखा आप सोचते हो कि हम खबरों पर ध्यान नही देते। हमारे देश कि परंपरा अच्छी है जो खरपतबार की तरह उग आए बरसाती मेंडक की भांति टर्राने बाले चेनलों ओर राजनीति कि लाबिंग की तरह खबरों का व्यापार करने वाले अखबारों की कतरनों को अवलोकन के बाद उस पर विशेषटीप के साथ कार्यवाही को लिखे जाने तथा उसका प्रतिवेदन प्रस्तुत किए जाने के लिए अलग रजिस्टर संधारित किए जाने के काम को आप संदेह की दृष्टि से देख रहे हो इसलिय एडीएम साहब का नाराज होना लाजिमी ही जो उनके पक्षपातरहित इस दायित्व की आप त्रुटियाँ निकाल रहे थे। सरकार ने पत्रकारों के काम की समीक्षा के लिए जनसम्पर्क विभाग नहीं रखा बल्कि समाचारों पर कार्यवाही हेतु जनसम्पर्क अधिकारी को अधिकृत किया है। कलेक्टर ने बात जारी रखी ओर बोले यह अलग बात है कि सूचना प्रसारण एवं जनसम्पर्क विभाग आपके द्वारा छापी खबरों की जुगाली करके उसे उदरस्थ कर जिला प्रशासन के प्रति सेवा एवं समर्पण का भाव का निर्वहन कर रहे हो, यदि वे खबर पचा जाते है , तो हम उन्हे आज ही हिदायत देते है कि वे किसी भी अधिकारी से याराना निभाने से बचे ओर उसके खिलाफ छापी खबरों कि जुगाली कर खबर को पचाने से बचे, ओर वे ऐसा करते दोषी पाये जाएँगे तो सख्त सजा के हकदार होंगे। आगे एक अन्य अधिकारी बोले- देखो जी तरह से गांवों में बननेवाली सड़क, नल, कुए, हेंडपंप आदि को कागजो में बनाकर उसकी राशि को पचा लेने के प्रकाशित समाचार, ठेकेदारों द्वारा सड़क,पल निर्माण में सीमेंट,रेत,लोहा आदि पचाने की ताकत होती है, केंद्र सरकार के साक्षरता अभियान की तरह गोलमाल का कुछ लोगों द्वारा सलेट, पेंसिल पेन आदि पचाकर झूँटे आकडे पेश करने का महारत हासिल है उन सारे लोगों तथा देश को पचाने में जुटे नेताओं के गुणों को त्याग कर तुम खबरों जैसी तुक्ष्य वस्तु को पचाने की हिमाकत करे , यदि पचाना ही है तो तमाम योजनाए जिले में हा उन्हे पचाये ताकि पेट का जायका बदला जा सके।यह तो आप लोगों की महानता है कि आप किसी को कुछ पचाते बर्दाश्त नही कर सकते जो इतनी छोटी सी बात कतरने पचाने वाले मुद्दे को लेकर अपना समय खपा रहे हो।
बात पत्रकारों की कालोनी बसाने से शुरू होनी थी लेकिन समाचारों की कतरनों में उलझकर रह गई ओर पत्रकार लोग कलेक्टर ओर हावी हो गए आज समाचारों कि कतरनों पर ही बात होनी चाहिए। एक पत्रकार मित्र ने कलेक्टर पर आरोप लगा दिया कि आप ओर अन्य प्रशासनिक अधिकारी राजनेताओं के साथ मीटिंग ओर कार्यक्रमों में अपनी फोटो लगे समाचारों कि फाइल अपनी उपलब्धि के रूप में तो सँजोते है किन्तु भ्रष्टाचारों की खबरों को तबज्जो नहीं देते है। पत्रकार कितना भी कलम घिसे,कितना भी कागज काला करे उसकी मेहनत को नजरअंदाज किया जा रहा है जिसे गंभीरता से लेना चाहिए। अनेक पत्रकार अपने इसी आरोप को चीख चीख कर कहने लगे। कुछेक ने सनसनीखेज खबरों की कटिंग दिखाई तो कुछेक अपने चैनल पर चली स्क्रिप्ट दिखाने लगे। जब सबूत के साथ कलेक्टर ने खबरे देखी ओर पढ़ी तब उल्टे पत्रकाओं को झिड़का,इतना संगीन मामला मुझसे छिपाया गया। ऐसे मामले को लेकर आप खामोश कैसे बैठे रहे, कम से कम मुझे दिखा तो सकते थे। इस प्रकार पत्रकारों से चर्चा कर कलेक्टर ने जनसम्पर्क अधिकारी को लताड़ा।
कलेक्टर ने घंटी बजाई। अलादीन के चिराग कि तरह सफ़ेद झक कपड़े पहने उनका चपरासी प्रगट हुआ। उन्होने आदेश दिया स्टेनो को भेजो। आदेश के पालन में स्टेनो फाइल हाथ में दबाये खड़ा था। कलेक्टर ने आदेश दिया जिला जनसम्पर्क अधिकारी से बात कराओ। स्टेनो ने नंबर डायल करने के बाद कलेक्टर से कहा वे आफिस में नही है। कलेक्टर पत्रकारों से मुखातिब हुये ओर बोले तभी तो आप लोगों की कतरने हमारे पास नहीं आती है। कलेक्टर स्टेनो को सुनाने का अभिनय कर पत्रकारों को बताते हुये नाराज हुये ओर बोले जिला जनसम्पर्क अधिकारी कि आदत बिगड़ गई है,ऑफिस नहीं आते ओर खुद को कलेक्टर समझते है। स्टेनो ने टोका- सर इस पद पर किसी कि नियुक्ति नही हुई है। कलेक्टर बोले जाओ अगर वे नहीं है तो सहायक जनसम्पर्क अधिकारी को बुलाओ ? सहायक जनसम्पर्क अधिकारी भागा भागा आया। कलेक्टर चीखे आपके आफिस में क्या चल रहा है जो इमपार्टटेंट कटिंग नहीं भेजी जा रही है। बेचारे ये पत्रकारों की भी कोई इमेज है,अगर इनकी खबरों पर कार्यवाही नही होगी तो इनकी इज्जत दो कोडी की नही हो जावेगी फिर इन्हे घास कौन डालेगा। हमारे जिले कि किसी भी महकमे के अधिकारी व कर्मचारियों की उन जन्मकुंडलियों का क्या होगा जिन्हे ये पत्रकार उजागर करते है। हम चाहते है कि जिले में थोड़ी बहुत दहशत इन पत्रकारों कि भी बनी रहे ताकि जो अधिकारी कर्मचारी खुलेआम मनमर्जी कर रहे है उनकी नाकों में ये कहा ओर कैसे नकेल डालते है इसकी भनक हमे भी होनी चाहिए। जाइए जैसे भी हो अब इन पत्रकारों के समाचारों कि प्रतिबंधित कतरने हमे नियमित भेजिये। सर आप जानते है कि मेरे पास काम का बोझ अधिक है। आफिस में मुझे कोई कुछ नही समझता है। मुझे सभी विभागों से जानकारी एकत्र कर समाचार बनाने से फुर्सत नही मिलती है फिर इन सम्मानीय पत्रकारों के अखबार कि कटिंग आप तक भेजना संभव कैसे होगा? सीधा सपाट जबाब सुनकर कलेक्टर आगबबूला हो गए ओर बोले तुम्हारे विभाग का क्या ओचित्य? नौकरी करना है तो सब काम करना होगा। फिर पत्रकारों से बोले आप सभी आशान्वित रहे अगले सप्ताह तक आप सभी कि समाचारों की कतरनों को लेकर अब शिकायत नही रहेगी। तब तक चाय- बिस्कुट सर्वे कि जा चुकी थी ओर पत्रकार लोग उठने लगे तब कलेक्टर ने अगले सप्ताह सोमवार को फिर बैठक सुनिश्चित कर सहायक जनसम्पर्क अधिकारी को उपस्थित रहने कि हिदायत देकर चले गए।
31 मार्च 1997 को फिर जिले के सभी पत्रकारों कि बैठक उसी रेवाकक्ष में हुई। इस बार जिले के प्रमुख अधिकारियों को भी बुलाया गया ताकि वे पत्रकारों का सामना कर सके। कुर्सियों पर पत्रकार खचाखच भरे थे तो कलेक्टर के साथ ओर साइट में अधिकारियों की कुर्सी जमी थी। किस विभाग पर क्या गाज गिरेगी, यह कोई नहीं जानता था। 80 प्रतिशत पत्रकारों के मन में था कि पहला विषय पत्रकार कालोनी का हो जो जमीन नगरपालिका देने को तैयार है ओर जिसके लिए सांसदों ने राशियों कि घोषणा की है, पर इस बार पूरे जिले के पत्रकार बैठक में थे। अधिकारीगण अपने अपने विभागों कि कार्ययोजना की प्रगति रिपोर्ट लेकर डटे थे। जैसे ही कलेक्टर महोदय आए सभी ने उनका अभिवादन किया ओर होशंगाबाद के पत्रकारों ने अपनी पहली मांग पत्रकार कालोनी कि रखी। पत्रकारों को विश्वास था कि वे नगरपालिका अधिकारी ओर योजना सांख्यकी अधिकारी को सांसद कि घोषणा को लेकर कुछ कहेंगे, इससे पूर्व ही एडीएम ने सूचित किया कि कलेक्टर साहब का स्वास्थ्य ठीक नही होने से वे कुछ भी नही बोलेंगे, डाक्टरों ने उन्हे बोलने को मना किया है? सुनते ही पत्रकारों को जैसे सांप सूंघ गया। लगा जैसे कोई षड्यंत्र पत्रकार कालोनी न बनने के लिए चल रहा है, बात संदिग्ध लगी कि सुबह ही तो बैठक में साहब बोले थे, शाम चार बजे उन्हे क्या हो गया? पत्रकारों की पत्रकार कालोनी का सपना पूरा न होने देने वाले वे पत्रकार मित्र बैठक में मुस्कुरा रहे थे। लोककल्याण ही पत्रकारिता का धर्म समझने वाले पत्रकारों के लोककल्याण के प्रश्न पर कलेक्टर का आचरण धर्मविरोधी नही तो क्या था? अधिकारीगण खुश थे,क्योकि उनसे कोई सवाल नहीं कर रहा था। बैठक उन स्वार्थलिप्त विचारधारा के नीति निर्धारण करने वाले पत्रकारों कि अगुआई में शुरू हुई जो प्रगतिसाध के खिलाफ थे। जिले के पत्रकार अपनी अपनी बाते कर रहे थे, बैठक संसद का सदन बनकर रह गई । कलेक्टर सहित अधिकारियों ने राहत कि सांस ली मानो अमृत वितरण के समय विश्वसुंदरी मोहिनी रूपा ने पत्रकारों के मनों में आसक्ति जमा ली ही। मौका पाकर अधिकारियों ने चाय नास्ते का इंतजाम किया जिसमें सारे पत्रकार मशगूर हो गए।सभी भूल गए कि वे क्या उद्देश्य लेकर आए थे ओर वे चाय नास्ते में भटक गए। बैठक में न तो समाचार पत्रों में छपने वाली खबरों पर चर्चा हुई, न ही किसी पत्रकार की निजी या क्षैत्र कि जनहित कि समस्या पर बात हुई, कलेक्टर कि निष्ठा में पत्रकारों की कमजोरी को भापने वाले अधिकारी द्वारा मुद्दे से भटकाकर उनके लिए चाय नास्ते कि सौगात ने सब किए कराये पर पानी फेर दिया। समय बीतता गया लेकिन होशंगाबाद के पत्रकारों के सर्वांगीण विकास के लिए, उनकी आवासीय समस्याओं के निराकरन के लिए सभी के हिलमिल कर रहने के प्रयास को नकारात्मक छवि के साथियों ने आज भी एकीकार नही होने दिया ओर अपनी कलुषित विचारधारा को गतिरोध देने कि बजाय आज भी उसी अंधेरे राहों पर चल रहे है। जो पत्रकार मित्र लोकतान्त्रिक व्यवस्था को कायम रखकर समाज को स्वस्थ दिशा देने का दायित्व का निर्वहन कर रहा है वह ही वास्तव में पत्रकारिता के धर्म का पालन करा रहा है ,शेष वे लोग जो कलेक्टर की मंशा के अनुरूप पत्रकारों के हितों के साथ खिलवाड़ करने हेतु निष्ठा निभाकर कुछेक की स्वार्थलिप्सा का उच्च प्रबंधन करने में अग्रणी है,उनकी भूमिका को कभी क्षमा नहीं की जा सकती है ओर वे सदैव निंदित रहेगे,जिन्होने चाय नास्ते के उच्च प्रबंधन करके पत्रकारों के लिए आवास बसने से पूर्व ही उन्हे उनके अधिकारों से वंचित किया, जो एक श्राप की तरह अब तक पत्रकारों को अभिश्रप्त किए हुये है।