आज वसुन्धरा दिवस है। बाबूलाल दाहिया (पद्मश्री)
आज वसुन्धरा दिवस है। बाबूलाल दाहिया (पद्मश्री)
होशंगाबाद जी हां आज वसुन्धरा दिवस है। जिसे आप पृथ्वी, धरा, धरती अवनि किसी का भी दिवस कह सकते हैं।  भला बताइये कि  जिस पृथ्वी में हम रह रहे हैं ,जिस पृथ्वी ने हमारे जैसे हमारे  करोड़ों पूर्वजों को जन्म लेते, अपने ऊपर चलते फिरते और फिर  बुढ़ापा आने के बाद मरते भी देखा हो, उसकी सलामती का दिवस हम अधिकतम 100 वर्ष की क्षुद्र जिन्दगी जीने वाले लोग मनायें? उस पर परिचर्चा, गोष्ठियां आदि करें?, यह अपने आप में कितना अश्यचर्य  है। पर हां कर रहे हैं और आज यह करना जरूरी भी है। क्योंकि वसुन्धरा को हमने सचमुच ऐसे खतरे में डाल दिया है। यूं तो उसने अपने ऊपर चलने फिरने और तमाम उपलब्ध संसाधनों का उपभोग करने के लिए बैक्टीरिया से लेकर हाथी तक, बड़े छोटे जल जीव से लेकर उड़ने वाले पक्षी और पेड़ पौधे आदि हजारों लाखों तरह की अपनी संतति बना रखी है। पर यह आसन्न संकट सिर्फ एक ही सन्तान से है, और  वह है मनुष्य यानी हम लोग जो वसुन्धरा दिवस मना रहे हैं।  क्योंकि उसके बाकी बेटे तो बेचारे आज भी लाखों वर्षों पुरानी उसी आदिम अवस्था में जीते खुद भी वसुन्धरा ही की तरह खतरे से जूझ रहे है। पर यह मनुष्य रूपी जंतु आज सभी के ऊपर भारी बना हुआ है। इसने दो अदद फुरसत के हाथों एवं एक अदद विलक्षण बुद्धि के बूते जल, थल, वायु मण्डल किसी को महफूज नहीं छोड़ा।
इसलिए इसके यानी की खुद अपने  कुत्सित कर्मो के धिक्कारने का भी दिवस है यह वसुन्धरा दिवस। क्योंकि यदि मनुष्य रूपी इस जंतु के करतूतों पर निकट भविष्य में लगाम न लगी तो पता नहीं यह धरती को कहां से कहां पहुंचा देगा? कहा नहीं जा सकता।इसलिए आइये अपनी ही क्रिया कलापों को धिक्कारते हुए। जन जन को आगाह करें और वसुन्धरा दिवस मनाएं।