होश्ंागाबाद:- कोरोना की वजह से पिछले साल हुए आजादी के बाद के सबसे बड़े पलायन के घाव अभी भरे नहीं थे कि एक बार फिर बड़े शहरों से पलायन की त्रासद तस्वीरें आने लगी हैं। कंधों पर जिंदगी का बोझ लिए डरे हुए बेबस लोग घर वापसी के लिए निकल पड़े हैं। महानगरो जैसे मुंबई हो या दिल्ली, रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर भीड़ लगी है। रोज कमाने-खाने वालों के लिए कोरोना की बजाए लॉकडाउन रूह कंपाने वाला शब्द बन गया है। जिंदगी की जद्दोजहद में एक तरफ पेट तो दूसरी तरफ संक्रमण के डर के बीच लोग जल्दी से जल्दी घर पहुंचना चाहते हैं। रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर मजदूरों की भारी भीड़ उमड़ रही है। लोगों को पिछली बार की तरह लॉकडाउन का डर है। मजदूर समय रहते गांव पहुंचना चाहते हैं। महानगरो से जिले के मजदूरों के पलायन के अलावा अन्य इंडस्ट्रियल क्षेत्र से भी मजदूर बड़े पैमाने पर अपने-अपने गांव की ओर रवाना हो रहे हैं जो राज्य मार्ग होश्ंागाबाद भोपाल देवास खण्डवा एवं जगहो से निकल रहे हे। पिछले कई दिनों से मजदूरों का गांव लौटने का सिलसिला जारी है। चाहे बस स्टैंड हो या रेलवे स्टेशन मजदूर बड़ी संख्या में अपने-अपने घरों की और लौट रहे हैं। हिस्सों में मजदूरों के जत्थे पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं। इटारसी भोपाल एवं इंदौर में भी बस स्टैंड पर बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों का पलायन देखने को मिल रहा है।
संक्रमण के कारण लोगों में लॉकडाउन का डर है। उद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप में कई कंपनियां हैं, इनमें करीब 40 प्रतिशत लोग दूसरे राज्यों के हैं। अधिकांश गांव वापस जा रहे हैं। गांव वापसी के लिए लोग बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर पहुंच रहे हैं। किसी की कंपनी बंद हो गई है, किसी को निकाल दिया गया है।
पिछला दर्द अब तक नहीं भूले मजदूर कुछ दिनों से इंदौर मंडीदीप से मजदूरों का पलायन जारी है, लोगों में लॉकडाउन का दर इस कदर हावी हो गया है कि लोग दोगुना बस किराया तक दे रहे हैं। सूत्रो के मुताबिक अब तक 45 हजार से ज्यादा लोग पलायन कर चुके हैं, हालांकि मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि लाॅकडाउन नहीं लगेगा, फिर भी लोग दहशत में हैं। कहते हैं- हम उस दर्द से दोबारा गुजरना नहीं चाहते जिसे हमने पिछले लॉकडाउन के दौरान सहन किया था।
ये मजबूर मजदूर क्या कहते हैं...
राइस मिल में काम करता था। अब मिल ही बंद हो गई है। काम नहीं है। इसलिए गांव लौटना पड़ रहा है।
नीतीश कुमार, मजदूर, बिहार
होश्ंागाबाद में मकान बनाने का काम करता था। काम बंद है और मालिक ने खाली पढे मकान को ताला लगा दिया है। रहने-खाने के पैसे खत्म हो जायेगे यहां रहकर क्या करूंगा। घर लौट रहा हूं।
गिरधारी कुमार, मजदूर,
लोहे के कारखाने में काम कर रहा था। बिगड़ते हालात को देख लॉकडाउन लग सकता है। गांव लौटने में ही भलाई है।
वैष्णव, मजदूर, छत्तीसगढ़
ठेका पर काम करते थे बंद हो गया है। गांव मुंगेली लौट रहे हैं।
हेमलाल यादव, मजदूर, छत्तीसगढ़
खिलौना बिक्री का काम करते थे। बाजार बंद हो गई है। रहने-खाने की समस्या खड़ी हो जाएगी, इसलिए घर लौट रहे हैं।
निखिल गौतम, कर्मचारी,
भोपाल होश्ंागाबाद में टेलरिंग का काम कर रहा था। जिस बड़ी दुकान से ऑर्डर मिलते थे। वह बंद हो गई है। लॉकडाउन में परेशानी बढ़ेगी, घर लौट रहा हूं।
लाल मोहम्मद, उत्तरप्रदेश
में मार्बल का काम करते थे, कुछ दिनों से कंपनी बंद है। लॉकडाउन की आशंका है, इसलिए घर लौट रहे हैं।
खरेन्द्र शर्मा, मजदूर, ढोलपुर
मण्डीदीप कंपनी बंद हो गई है, गांव लौटना मजबूरी है।