बैतूल/सारनी। कैलाश पाटिल
भारत दुनिया के सबसे ज्यादा आर्थिक असमानता वाले देशों में एक है,जहां अमीर तेजी से और अमीर हो रहे हैं और गरीब की हालत और बिगड़ती जा रही है। महामारी से बचाव के लिए किए गए कुछ उपायों ने असमानता की खाई को कई गुना बढ़ा दिया। कोरोना संकट से निपटने के लिए केन्द्रीय सरकार के द्वारा कड़े निर्णय लिये जा रहे हैं। मौजूदा हालत को देखते हुए यह निर्णय जरुरी भी है क्योंकि कोरोना वायरस का संक्रमण फैला तो स्थिति भयावह हो जाएगी। कोरोना की जंग में जीत के लिए लोग घर में रहने तैयार भी है, पर मुश्किल यह है कि इस दौरान घर कैसे चलाया जाए। उच्च वर्ग के पास पर्याप्त साधन है, परेशानी निम्न,मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए खड़ी हो गयी है। जो रोजाना नौकरी / दुकानदारी कर/ असंगठित मजदूर आय अर्जित करते है जिससे उनका परिवार चल पाता है। लॉकडाउन में किसी तरह परिवार के लिए राशन का इंतजाम कर लिया पर अब जमा पूंजी भी खत्म हो गई है।
डॉ मोदी ने कहा की आंकडे के मुताबिक एक करोड़ से ज्यादा सालाना आमदनी वालों पर आय कर 40 फीसद तक बढ़ा कर जुटाई रकम को आर्थिक पैकेज में लगाने का सुझाव आइआरएस ऐसोसिएशन ने दिया था। इसी आधार पर महामारी के दौरान अमीरों की आमदनी जितनी बढ़ी है,उतनी रकम से पांच महीने तक चालीस करोड़ असंगठित क्षेत्र के कामगारों को गरीबी से उबारा जा सकता है। डॉ मोदी ने बताया कि पूर्णबंदी के कारण भारत में अमीर तबका खुद को तो आर्थिक नुकसान से बचा ले गया, लेकिन गरीबों के हिस्से में बेरोजगारी, भूख और मौतें आईं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) के अनुसार भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली लगभग 90 फीसद आबादी में कमोबेश चालीस फीसद लोगों पर और गहरी गरीबी में चले जाने का खतरा खड़ा है । यह चिंता का विषय है कि कोरोना महामारी दायरा सिर्फ बीमारी तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसका असर लोगों के सामाजिक-आर्थिक जीवन पर भी पड़ा है। यह तो हम देख रहे हैं कि महामारी फैल रही है और रोजाना हजारों लोग इसकी चपेट में आकर मर भी रहे हैं।
महामारी ने जिस तरह से लोगों की माली हालत खराब कर दी है, उससे उबरना कहीं ज्यादा कठिन होगा। बिगड़ती आय असानता, बेरोज़गारी की दर में बढ़ोत्तरी और ग्रामीण खपत में कमी, सुरक्षित रहने की चुनौती के साथ परिवार के लिए भोजन जुटाने का संघर्ष जैसे मुद्दों ने कोरोना महामारी में सामाजिक और आर्थिक खाई को और चौड़ा कर दिया है। डॉ मोदी ने कहा की महामारी के भीतर एक महामारी छिपी है और वो मानसिक स्वास्थ्य है जिसका कोई भी मनोवैज्ञानिक मानसिक तनाव से मुक्ती नहीं दिला सकता। कोरोना संकट में आज देश को विकासशील अर्थव्यवस्था से कल्याणकारी अर्थव्यवस्था में बदलने की जरूरत है जो आर्थिक असमानता, बहुसंख्य आबादी रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करे जो आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कारगर कदम साबित होगा।