जोहड़ों पर हो रहे अवैध कब्जे, प्रशासन मौन

 जोहड़ों पर हो रहे अवैध कब्जे, प्रशासन मौन

कूड़ा-करकट डालने से शुरू होता है अतिक्रमण, कब्जा धारियों को मिल रही प्रशासन और राजनीतिज्ञों की मोन स्वीकृति


बराड़ा, (जयबीर राणा थंबड़)। सृष्टि की रचना के साथ विधाता ने मानव जाति के जीवन बसर करने के लिए पृथ्वी का निर्माण किया। पृथ्वी का अधिकतर भाग पर्वत-पहाड़ों, समुद्र-महासागरों, नदी-तालाबों, जल संसाधनों आदि के लिए सुरक्षित रखा। परन्तु भूमि के लिए इंसानों के बढ़ते लालच ने प्रकृति की संरचना और मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ की, जिसका खामियाजा मानव जाति समय समय पर बाढ़ व अन्य कुदरती आपदाओं के रूप में भुगतते हैं, परन्तु स्वार्थ और लालच की बेड़ियों में जकड़ा इंसान कुदरत के न्याय को नहीं समझ पाता और अपने लोभ की काम पिपासा को शांत करने के लिए परमात्मा की बनाई सुंदर सृष्टि के साथ अन्याय करने से बाज नहीं आ रहा।


समय के साथ इंसानों की संख्या बढ़ी तो जरुरतें भी बढ़ी और सबसे ज्यादा जरुरत जमीन की महसूस की। कहीं जमीन बढ़ाने के लिए पर्वतों को काटकर समतल किया गया तो कहीं समुद्रों, नदी-तालाबों को सुखाकर भूमि का विस्तार किया गया। परन्तु भूमि के लिए इंसानी लालच अब बस्ती आबादी तक पहुंच गया, जिससे मानव जाति का जनजीवन अस्त-व्यस्त और प्रभावित हुआ। बड़े दर्जे के भूमाफियाओं ने बड़े व छोटे भूमाफियाओं ने छोटे स्तर पर अपनी तिजोरियां भरने के पृथ्वी के वास्तविक स्वरूप के साथ मनमानी की, जिससे आमजन का जीना दुश्वार हो गया है और अब भूमाफियाओं के भ्रष्ट पंजे छोटे छोटे गांवों तक पहुंच गये। गंदे पानी की निकासी के लिए गांव-दर-गांव बनाए गए जोहड़ों पर हो रहे भूमाफियाओं के अतिक्रमण और अवैध कब्जों ने लोगों का इस कद्र जीना मुहाल किया है कि इनकी सुरक्षा के लिए हाईकोर्ट को बीच में आना पड़ा और भूमाफियाओं के कब्जे की जमीन को प्राकृतिक रूप देने के लिए सरकार को 6  महीने की मोहलत दी है। हालांकि हाईकोर्ट के यह निर्देश लागू करवाने वाले अधिकारियों और प्रशासन की मिलीभगत और ग्राम स्तर पर वोट बैंक की राजनीति के कारण ही जोहड़ों पर अवैध कब्जों की यह स्थिति विस्फोटक हुई है।

पूरे देश में भूमाफियाओं द्वारा सरकारी व पंचायती जमीनों और तालाबों व जोहड़ों पर मिट्टी डालकर अवैध कब्जा करने की कोशिश निरंतर जारी है। खाली पड़ी जमीनों और जोहड़ों के किनारे पहले कूड़ा-कचरा डालकर, फिर डंगर बच्छा बांधकर, फिर गोबर के गुहारे बनाकर और अंततः जमीन पक्की हो जाने पर कमरा व मकान का निर्माण करने की प्रक्रिया इतनी सरलता और मुस्तैदी से की जाती है कि किसी को कानों-कान खबर नहीं होती और अवैध कब्जा हुआ ही नजर आता है। ग्राम स्तर पर राजनीतिक लोग वोट बैंक के लिए कुछ नहीं बोलते और सरकारी अधिकारी की मुट्ठी गर्म हो जाती है तो अवैध कब्जे पर सरकारी मंजूरी का मूक समर्थन मिल जाता है, लेकिन इन सबका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता है, जिनके घरों, गली मौहल्लों में गंदा पानी पसरा रहता है। यह गंदगी किस तरह से मानवजाति के लिए  घातक है, यह यहां बताना आवश्यक नहीं है परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा चलाए 'स्वच्छ भारत अभियान' की धज्जियां मुट्ठी भर भ्रष्ट अधिकारियों और भूमाफियाओं द्वारा सरेआम  उड़ायी जा रही है, जबकि जग हंसाई स्वच्छ अभियान की होती है।

समाज के बुद्धिजीवियों की प्रशासन से मांग है कि हाईकोर्ट के आदेशानुसार सरकारी जमीनों और जोहडों  पर हुए भूमाफियाओं के अवैध कब्जों को मुक्त कराकर जनता को साफ और स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराये।

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