भीम के रूप में शंकर ने किया था त्रिपुरासुर का वध

होशंगाबाद-
भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग स्थापित हुआ, इटारसी 24/07/2020 
कलयुग में कामी और धर्मी है तो आस्तिक और नास्तिक भी। पूरे ब्रम्हाण में भारत भूमि ही ऐसी पवित्र माता है जिसमें 33 करोड़ देवी देवता वास करते है। सभी सुख शांति देने वाले है। इन सभी में भगवान शिव का अपना अलग स्थान है। कलयुग में भी आस्था और धर्म के प्रति भटकाव न हो इस हेतु भगवान के लिंग स्वरूप में 12 ज्योर्तिलिंग देश के अलग अलग राज्यों में है। उक्त विचार अपने प्रवचन के दौरान आयोजन के मुख्य आचार्य पं. विनोद दुबे ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि सावन मास में शिवजी हंसमुख प्रवृत्ति के रहते है गुस्सा कम और स्नेह के भाव ज्यादा रहने से वे भक्तों पर निरंतर कृपा करते है। पं. विनोद दुबे ने भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग की कथा सुनाते हुए कहा कि महाराष्ट्र के पूणे जिले के राजगुरू नगर (खेड़) तहसील से धोड़ेगांव के आगे सहयाद्रि पर्वत माला में भीमाशंकर की पहाड़िया है इसी पर्वत श्रृंखलाृ में भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग का वास है। यहां पर आने के पहले श्रद्धालु चंद्रभागा नदी में स्नान करके ही ज्योर्तिलिंग के दर्शन करते आते है। यहां के बारे में कहावत है कि यहां के वन पहले शाकिनी और डाकिन के नाम से कुख्यात थे। इतना ही नहीं ज्योर्तिलिंग के दर्शन करने पहले शेर भी आते थे। भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग की कथा से त्रिपुरासुर राक्षस के वध की कथा भी जुड़ी हुई है। प्राचीन काल में त्रिपुरासुर नाम का राक्षस बड़ा उनमत हो गया था। स्वर्ग, धरती और पाताल में उसने भारी उत्पाद मचा रखा था सभी देवगण व्याकुल हो चुके थे तब भगवान महोदव त्रिपुरासुर का वध करने स्वंय निकले उन्होंने विशाल भीमाकाय शरीर धारण किया उनका रूद्रावतार देखकर त्रिपुरासुर भयभीत हो गया दोनों में कई दिनों तक युद्ध चलता रहा। जब त्रिपुरासुर ने भगवान शंकर को समाप्त करने का मन में विचार किया तो शंकर ने भीम का विशाल रूप धारण किया और त्रिपुरासुर का वध किया इस कारण भी इस स्थान को भीमाशंकर कहते है।
भीमाशंकर का मंदिर हेमाडपंथी पद्धति से बांधा गया है। मंदिर को दशावतार की मूर्तियों से सजाया गया है। 1721 ईसवी का 5 टन वजनी घंटा भी मंदिर के आकर्षण का केंद्र है। आयोजन पं. सत्येंद्र पांडे एवं पं. पीयूष पांडे द्वारा कराया जा रहा है। 


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