तीन दिवसीय यजुर्वेद परायण यज्ञ में 1875 वेद मंत्रो से दी जा रही आहूतीयां

तीन दिवसीय यजुर्वेद परायण यज्ञ में 1875 वेद मंत्रो से दी जा रही आहूतीयां


बैतूल/सारनी। कैलाश पाटिल


धर्मो की बुनियाद वेदों के ज्ञान पर टिकी हुई है। सभ्यता में विकास आने से सामाज में बुराइयां पांव पसार रही हैं। यह उदगार जमानी गुरुकुल से आए आचार्य सत्यप्रीत और निरंजन ने व्यक्त करते हुए बताया कि हमारी सभ्यता में विकार आने की वजह से सामाज में बुराइंया पांव पसार रही हैं। यजुर्वेद परायण यज्ञ सुबह पांच से आठ और शाम पांच से आठ बजे तक सुख शांति के लिए हवन कुंड में वेद मंत्रों से आहुतियां दी जा रही है। परायण यज्ञ आठ मार्च से शुभारंभ हुआ है जो दस मार्च को होली के दिन  समापन होगा। उन्होने कहा कि वेदों के रास्ते चलकर मनुष्य बुराइंयो से बचकर सुखमय जीवन जी सकते है। वार्ड पांच में आयोजित तीन द्विवसीय यजुर्वेद परायण यज्ञ में 1875 वेद मंत्रो से आहुतियां दी जा रही है। वेद मंत्रों से आहुतियां देने का उद्देश्य ऋषि मुनी पहले वेदों का अध्यन कर त्यौहार मनाते थे लेकिन जिसका लाभ सुख शांतिके रुप में सुखमय जीवन यापन करते थे। वर्तमान  समय लोभियों द्वारा पुरानी परंपरा से खिलवाड़ करने की वजह मनुष्य धर्मो के रास्तों से भटककर दुखी हो रहे हैं। होशंगाबाद के जमानी आश्रम से परायण यज्ञ कराने आए आचार्य सत्यप्रीत और निरंजन जी ने बताया कि वर्तमान के हिंदू धर्म में काफी अंतर आ चुका है। यह स्वभाविक भी है क्योंकि समय के साथ हर चीज़ बदलती है। लेकिन जो चीज़ नहीं बदलती वह है वेदों का ज्ञान जो स्वयं ईश्वर से प्रकट हुआ है।  उन्होने कहा कि यजुर्वेद को चारों वेदों में ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है। ऋग्वेद व अथर्ववेद के मंत्र भी यजुर्वेद में शामिल मिलते हैं लेकिन फिर भी इसे ऋग्वेद से भिन्न ग्रंथ माना जाता है। हालांकि कुछ पौराणिक व प्राचीन ग्रंथों में यह भी गया है कि त्रेतायुग में केवल एक ही वेद था यजुर्वेद। इसी कारण इस दौर में हर कार्य के लिये चाहे वह पुत्र प्राप्ति हो या फिर युद्ध सबसे पहले यज्ञ व हवन करवाये जाते थे। इसकी खास बात यह है कि अन्य वेदों में मंत्र जहां पद्यात्मक हैं वहीं यजुर्वेद के मंत्र गद्यात्मक शैली में है। वेद हमें जीवन जीने की शैली सिखाने के साथ ही वेद मुख्यत यज्ञ करने की सही प्रक्रिया व उसके महत्व के बारे में बताता है। इसी कारण इसे कर्मकांड प्रधान ग्रंथ भी कहते हैं। यजुर्वेद की दो शाखाएं शुक्ल यजुर्वेद व कृष्ण यजुर्वेद मिलती हैं। कुछ विद्वान शुक्ल यजुर्वेद में केवल मूल मंत्र होने से इसे शुक्ल यानि शुद्ध वेद कहते हैं तो कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ-साथ विनियोग, मंत्र व्याख्या आदि मिश्रित होने के कारण कृष्ण यजुर्वेद कहते हैं।